चोटी की पकड़–15
यह मिलने का नतीजा है कि चारों तरफ हिंदू मंडला रहे हैं।
सरकार हर एक की है।
भूखों मरनेवाले भूखों न मरेंगे अगर सरकार को साथ दिया।
सरकार ने बंगाल के दो हिस्से किए हैं, यह मुसलमानों के फ़ायदे के लिए।
आए दिन ये जमीनें मुसलमानों की।
जमींदारी का यह कानून न रहेगा। नवाबों से सारी मुसलमान रैयत को फायदा नहीं पहुँचा।
नक्शा आँख के सामने आया।
बादशाहत से वह दब गया था।
कुछ यहाँ सुना, कुछ वहाँ, कुछ अपनी तरफ से सोचा। स्वदेशी का आंदोलन चल चुका था।
बातें मुसलमान और इतरवर्ग के नेता फैला रहे थे। अंग्रेजी शासन के प्रारंभ से ऐसी तोड़वाली बातों का महत्त्व है।
अली को कामयाबी हुई। लड़का पढ़ रहा था, एंट्रेस में 20 साल की उम्र में फेल हुआ, थानेदारी के लिए चुन लिया गया।
उन्होंने देखा था, उनके राज से थानेदार इंस्पेक्टर हो गए थे; वह अपने लड़के को राज देने लगे।
पहले मालिक की गरदन नापी। सोचा, असामी बड़ा है, तरक्की लंबी होगी। आंदोलन क हाल मालूम था।
राजा साहब जहाँ-जहाँ गए थे, लड़के से कहा। कोठी में जिनकी-जिनकी बग्घी आई थी, बतलाया।
मुसलमान कोचमैनों के नाम लिखवाए, भीतरी सूरत से गवाही ले लेने के लिए।
फिर कहा, राजा थियेटर-रोडवाली मशहूर तवायफ एजाज के घर जाता है, वह भी कभी-कभी कोठी आती है, कभी अपने वहाँ, बिलासपुर, साथ ले जाता है, वहाँ महीनों ठहरती है।